कथा- राम दरबार की

पुरूष प्रधान सत्ता स्त्री को भोगा कैसे ?

अर्धांगिनी गऊ सम हो वश में चाहे जैसे।।

एक बार राम भगवन के राज की कहानी।

एक नारि विधवा हो गयी, उमर मगर जवानी।

विधवा अब बेशुमार मुशीबत में जी रही थी।

मजबूर किसी हब्शी की शिकार बन गयी थी।

बच्चा भी उसकी गोद में अखिरात आ गया था।

तब राम के दरबार में भूचाल आ गया था।

सब सीता,राम लखन से शिकायत कर दिये,

विधवा के ऊपर सभी ने पंचायत कर दिये,

कहे राम मेरे राज में अनरथ हुआ ये कैसे?

चढाऊॅ उसे शूली जो भी पाप किया ऐसे?

लग गया दरबार बैठे राम सारे मंत्री।

खास लखन सीता हनुमान जन्त्री सन्त्री

हुक्म हुआ राम का विधवा को पकड़ लाओ,

बच्चा हुआ है कैसे ये राज उगलवाओ।

हनुमान गये नारि को फौरन घसीट लाये,

तू राम राज्य में क्यूॅ कलंक लगाये।

तेरे कुकर्म से पूरा दरबार शरमिन्दा।

मर्यादा पुरूषोत्तम कैसे रहेंगे जिन्दा।

क्रुद्ध राम बोले, शिशु का बाप कौन कैसे?

फौरन बताओ नाम ओ दुष्कर्म किया जैसे।।

विधवा थी गिड़गिड़ाई अबला समय की मारी।

बोली हुई जो गल्ती अब माफ हो हमारी।

ल्ेकिन चढ़ाये चाप तो स्वाभिमान जागा उसका,

बोली बता तो दूँगी है बाप कौन इसका।

पर बताये पहले श्रीराम बाप अपने।

दशरथ तो थे नपुंसक औलाद न थी सपने।

इतना ही सुनते राम के तो होश उड़ गये,

पर तमतमा के लक्षमण मारन को अड़ गये।

तुमने जगत भगवान की है नाक काट दी,

इत्ती बड़ी मर्यादा मिट्टी में मिला दी।

तो बिधवा बोली तू बता दे तेरा बाप कौन।

अब सिट्टी पिट्टी गुम हुई लक्ष्मण भी हो गये मौन।

तब सीता अँकड़ के बोलीं कि तू न सुधरे ऐसे।

देवर,पती, का मेरे अपमान किया कैसे?

सीता ने कहा रूक अभी मै मुँह तुम्हारा नोचूँ

विधवा है बोली अच्छा! अब तू है करती चँ चूँ

बड़े-बड़े बह गये तो गदही थाह लेती।

तेरा ही बाप कौन है तू ही बता न देती।

सीता भी पड़ी ठन्डी तो हनुमान खौखियाये,

पटके है पूँछ ऐंठे, हाँथे गदा उठाये।

मेरे ही सामने सबकी इज्जत उतार ली,

आदर्श राम रघुकुल की मूँछे उखाड़ ली।

विधवा हँसी सब हारे तो बन्दर हुआ मुकाबिल,

तो तेरा बाप कौन है बनता जो बड़ा काबिल।

यह सुनके वीर हनुमत भी दुम दबाके भागे।

सब ही की पोल खुल गई विधवा से माॅफी माँगे,

विधवा कही जो आप सब बिन बाप के हैं ऐसे।

तो मेरे ही बच्चे के पिता को ढॅँढ़ते हो कैसे।

मजबूरियों का फायदा लेता है मर्द जैसे।

तो नारी भी कैद न रह आजाद जिये वैसे।।